साथ भले ही

साथ भले ही मंज़िल तक ना था लेकिन,
बहुत खूबसूरत थे वो रास्ते जहाँ तुम साथ चलते थे।।

लगने दो आज महफ़िल

लगने दो आज महफ़िल, चलो आज
शायरी की जुबां बहते हैं
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तुम उठा लाओ “ग़ालिब” की किताब,हम अपना
हाल-ए-दिल कहते हैं.|