इस दिल में

इस दिल में और कांटे चुभने से पहले,
ज़रा एक बार देख लो, कितना कांटे पहले ही

चुभा चुकी है ये दुनिया, तेरा ये काँटा कही आखरी न हो…..

कल रात मैंने

कल रात मैंने अपने सारे ग़म,
कमरे की दीवार पर लिख डाले,
बस फिर हम सोते रहे और दीवारे रोती रही…

लफ्ज़ वही हैं

लफ्ज़ वही हैं , माने बदल गये हैं
किरदार वही ,अफ़साने बदल गये हैं
उलझी ज़िन्दगी को सुलझाते सुलझाते
ज़िन्दगी जीने के बहाने बदल गये हैं..

कांच था मैं

कांच था मैं किस तरह हीरे से करता दोस्ती..
क्या पता कब काट देगा प्यार से छू कर मुझे…