गुजर रहा था

गुजर रहा था तेरी गली से सोचा उन
खिड़कियों को सलाम कर लूँ…
जो कभी मुझे देख कर खुला करती
थी..

मेरी ज़िन्दगी की

टिकटें लेकर बैठें हैं मेरी ज़िन्दगी की कुछ लोग…….

साहेबान…….

तमाशा भी भरपूर होना चाहिए……
निमा की कलम से………..