फ़ासले इस कदर हैं रिश्तों में,
घर ख़रीदा हो जैसे क़िश्तों में
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
फ़ासले इस कदर हैं रिश्तों में,
घर ख़रीदा हो जैसे क़िश्तों में
अजीब मेरा अकेलापन है…
तेरी चाहत
भी नहीं..और
तेरी जरूरत भी है …!!!
दिलनशी दुनिया के नक्शों को ना होने दीजिए
इस गुलिश्ता से गुजर जाईए, दरिया होकर!!!!
कभी जलाओ तो सही दुआओं से।
दिये कभी नही बुझते फिर हवाओं से।
अब कहाँ जरुरत है हाथों मे पत्थर उठाने की,
तोडने वाले तो जुबान से ही दिल तोड़ देते हैं…..
कितनी ही शिद्दत से निभा लो तुम रिश्ता,
बदलने वाले बदल ही जाते हैं…!!!
जरूरत भर खुदा सबको देता है।
परेशां है लोग इस वास्ते कि, बेपनाह मिले।
गुनगुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रहती है न छाया देर तक
इस कदर भूखा हूँ कि .. कभी कभी धोखा भी खा लेता हूँ…!!!!
है याद मुलाक़ात की वो शाम अब तक,
मैं तुझको भूलने में हूँ नाक़ाम अब तक…!