ज़बान कहने से

ज़बान कहने से रुक जाए वही दिल का है अफ़साना,

ना पूछो मय-कशों से क्यों छलक जाता है पैमाना !!

मेरे बस में हो

मेरे बस में हो तो लहरों को इतना भी हक न दूं,
लिखूं नाम तेरा किनारे पर लहरों को छुने तक ना दूं।

इक मुद्दत से

इक मुद्दत से कोई तमाशा नहीं देखा बस्ती ने

कल बस्ती वालों ने मिल-जुलकर मेरा घर फूंक दिया