ज़बान कहने से

ज़बान कहने से रुक जाए वही दिल का है अफ़साना,

ना पूछो मय-कशों से क्यों छलक जाता है पैमाना !!

मेरे बस में

मेरे बस में हो तो लहरों को इतना भी हक न दूं,
लिखूं नाम तेरा किनारे पर लहरों को छुने तक ना दूं।

जिस नजाकत से…

जिस नजाकत से…
ये लहरें मेरे पैरों को छूती हैं..
यकीन नहीं होता…
इन्होने कभी कश्तियाँ डुबोई होंगी…

चल ना यार हम

चल ना यार हम फिर से मिट्टी से खेलते हैं हमारी उम्र क्या थी जो मोहब्बत से खेल बैठे|