कागज़ पर उतारे

कागज़ पर उतारे
कुछ लफ्ज़,
ना खामखा थे..
ना फ़िज़ूल थे..
ये वो जज़्बात थे..
लब जिन्हें कह ना पाएं
थे कभी…!!

माना की आज

माना की आज इतना वजुद नही हे मेरा पर…

बस उस दिन कोई पहचान मत निकाल लेना जब मे कुछ बन जाऊ…

अपनी जुबान से

अपनी जुबान से किसी की बुराई मत करो,
क्योंकि…
बुराइयाँ हमारे अंदर भी हैं,और जुबान दूसरों के पास भी है.!