सज़ा-ए-मौत

कुछ लोग सिखाते है मुझे प्यार के क़ायदे कानून,

नही जानते वो इस गुनाह में हम सज़ा-ए-मौत के मुज़रिम हैं…….

गुजर रही है

गुजर रही है जिन्दगी जिक्र हे खुदा से गाफिल,
ए दिल ए नादां सम्भल जा ज़रा के मौत का कोई वक्त नही.

इतना शौक मत

इतना शौक मत रखो

इन ” इश्क ” की गलियों में जाने का..
क़सम से रास्ता जाने का है आने का नही..!!

खुली हवाओं की

खुली हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती है !
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है !!

जो जुर्म करते हैं, इतने बुरे नहीं होते !
सज़ा न दे के अदालत बिगाड़ देती है !!