Koi muskurakar rakh gaya
meri kabr’a par mohabbat ka phool;
aaj ishq ki aankhon mein
khumaar utar aaya hai
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
Koi muskurakar rakh gaya
meri kabr’a par mohabbat ka phool;
aaj ishq ki aankhon mein
khumaar utar aaya hai
Tu wo zaalim hai
jo dil mein rehkar bhi
mera na ban saka
aur dil wo kaafir,
jo mujhme rehkar bhi
tera ho gaya
कुछ लोग सिखाते है मुझे प्यार के क़ायदे कानून,
नही जानते वो इस गुनाह में हम सज़ा-ए-मौत के मुज़रिम हैं…….
जौर तो ऐ ‘जोश’ आखिर जौर था,
लुत्फ भी उनका सितम ढाता रहा।
Shor-e-vahshat bhi nahin,
tangi-e-daaman bhi nahin
mujh par utri hai
mohabbat badi tehzeeb ke sath
गुजर रही है जिन्दगी जिक्र हे खुदा से गाफिल,
ए दिल ए नादां सम्भल जा ज़रा के मौत का कोई वक्त नही.
अगर ख़ुशी मिलती है उसे हम से जुदा होकर;
तो दुआ है ख़ुदा से कि उसे कभी हम ना मिलें…!!
इतना शौक मत रखो
इन ” इश्क ” की गलियों में जाने का..
क़सम से रास्ता जाने का है आने का नही..!!
खुली हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती है !
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है !!
जो जुर्म करते हैं, इतने बुरे नहीं होते !
सज़ा न दे के अदालत बिगाड़ देती है !!
आखिर किस कदर खत्म कर सकते है…
उनसे रिश्ता..!
जिनको सिर्फ महसूस करने से…
हम दुनिया भूल जाते है..