मेरी मोहब्बत तो

मेरी मोहब्बत तो मुकम्मल थी जो चार दिन मिला

प्यार तेरा
तेरे जिस्म की चाहत तो थी ही नहीं, तेरे अलगाव को कैसे मैं

बेवफाई कह दूं

सजा यह मिली

सजा यह मिली की आँखों से नींद

छीन ली उसने,
जुर्म ये था की उसके साथ रहने का ख्वाब देखा था |

कितना मेहरबान था

वो कितना

मेहरबान था,कि हजारों गम दे गया यारों,
हम कितने खुदगर्ज

निकले,कि कुछ ना दे सके,
मोहब्बत के सिवा….