तुम डूब जाते हो

तुम डूब जाते हो शाम के आँचल में मेरे आँचल में स्याह रात ने पनाह ली हैं|

कदमों को रोकने का हुनर

कदमों को रोकने का हुनर नहीं आया..! मंजिलें सारी निकल गई मगर घर नही आया….

दुआ तो एक ही काफी है

दुआ तो एक ही काफी है गर कबूल हो जाए, हज़ारों दुआओं के बाद भी मंजर तबाह देखे हैं ।

जिनके पास अपने है

जिनके पास अपने है वो अपनों से झगड़ते हैं… नहीं जिनका कोई अपना वो अपनों को तरसते है।

कौन किसे चाहता है

कौन किसे चाहता है आजकल सवाली होकर… अहमियत बादल भी खो देते हैं अक्सर… खाली होकर…

अंधों को दर्पण

अंधों को दर्पण क्या देना, बहरों को भजन सुनाना क्या.? जो रक्त पान करते उनको, गंगा का नीर पिलाना क्या.?

पर्ची जो तेरे दिल की

पर्ची जो तेरे दिल की आरजुओं की हाथ लग जाती अगर… इश्क़ में तेरे हम भी नकल कर के पास हो जाते …

तपिश अपने बदन की

तपिश अपने बदन की मुझको दे दे, मैं पत्थर हूँ पिघलना चाहता हूँ……!!

बस बरसात रह गयी…

ना इश्क़, ना वादा, ना मंज़िलें, ना शोहरतें… इस साल भी बरसात बस बरसात रह गयी…।।

मेरे दराज़ में

मेरे दराज़ में रक्खा है अब भी ख़त उसका, पुराना इश्क़, पुराना हिसाब हो जैसे…

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