आँखे भिगोने लगी है अब यादे भी तेरी ,
काश तुम अजनबी ही होते तो अच्छा होता|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
आँखे भिगोने लगी है अब यादे भी तेरी ,
काश तुम अजनबी ही होते तो अच्छा होता|
तेरे इश्क़ का सुरूर था जो खुद को बरबाद कर दिया…!!
वरना एक वक्त था जब दुनियां मेरी भी रंगीन थी…!!
काश के कभी तुम समझ जाओ मेरी
चाहत की इन्तहा को,
हैरान रह जाओगे तुम
अपनी खुश-नसबी पर..
शीशे की अदालत में
पत्थर की गवाही है
कातिल ही मुहाफिज है
कातिल ही सिपाही है|
ऐ समन्दर मैं तुझसे वाकिफ हूं
मगर इतना बताता हूं,
वो आंखें तुझसे ज्यादा
गहरी हैं जिनका मैं आशिक हूं..
ज़माना हो गया देखो मगर चाहत नहीं बदली,
किसी की ज़िद नहीं बदली, मेरी आदत नहीं बदली.
रखा करो नजदीकियां, ज़िन्दगी का कुछ भरोसा नहीं,
फिर मत कहना की चले भी गए और बताया भी नहीं !!
चलो अब जाने भी दो, क्या करोगे दास्तां सुनकर… खामोशी तुम समझोगे नहीं, और बयां हमसे होगा नहीं…!
टूट सा गया है मेरी चाहतो का बजूद,,
अब कोई अच्छा भी लगे
तो हम इजहार नहीं करते ..
तुझे क्या लगता है मुझे तेरी याद नही आती……… पागल….. अपनी बर्बादी को कौन भुल सकता है|