कांच के टुकड़े बनकर बिखर गयी है ज़िन्दगी मेरी…
किसी ने समेटा ही नहीं…
हाथ ज़ख़्मी होने के डर से…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कांच के टुकड़े बनकर बिखर गयी है ज़िन्दगी मेरी…
किसी ने समेटा ही नहीं…
हाथ ज़ख़्मी होने के डर से…
बिछड़ना है तो रूह से निकल जाओ..
रही बात दिल की तो उसे हम देख लेंगे..
मुस्कुराने से शुरू और रुलाने पे खतम…।
ये वो जुल्म हैं जिसे लोग मोहब्बत कहते हैं…
मोहब्बत रूह में उतरा हुआ मौसम है जनाब,
ताल्लुक कम करने से मोहब्बत कम नही होती !
आपके चलने की भी क्या खूब अदा है..
तेरे हर कदम पे एक दिल टूटता है..!