लहू बेच-बेच कर
जिसने परिवार को पाला,
वो भूखा सो गया जब बच्चे कमाने वाले हो
गए…!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
लहू बेच-बेच कर
जिसने परिवार को पाला,
वो भूखा सो गया जब बच्चे कमाने वाले हो
गए…!!
हमने कब माँगा है
तुमसे वफाओं का सिलसिला;
बस दर्द देते रहा करो, मोहब्बत
बढ़ती जायेगी।
लोग मुन्तजिर थे, मुझे टूटता हुआ देखने के,
और एक मैं था, कि ठोकरें खा खा कर पत्थर का हो गया
तुमने भी हमें बस एक दिये की तरह समझा था,
रात गहरी हुई तो जला दिया सुबह हुई तो बुझा दिया..
ख्याल आजाद होते है…
पंख तो इच्छाओ के होते है।
मुझपे हंसने की ज़माने को सजा दी जाये …
मैं बहुत खुश हूँ ये अफवाह उड़ा दी जाये…
दिखावे की मोहब्बत तो जमाने को हैं हमसे
पर,
.
.
ये दिल,
.
.
तो वहाँ बिकेगा जहाँ ज़ज्बातो की कदर
होगी
तुम्हें भी याद नहीं और मैं भी भूल गया
वो लम्हा कितना हसीं था मगर फ़िज़ूल गया
आग लगाने को कहो तो हर शख्स के पास
माचिस है
घर किसी का जले
तो पानी की कमी हो जाती है।।
हम नींद के शौक़ीन ज्यादा तो नहीं लेकिन,
तेरे ख्वाब न देखूं तो गुज़ारा नहीं होता..