सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये.
कभी पैरों से रौंदी थी यहीँ परछाइयां हमने।
Category: Hindi Shayri
आंधी भी कभी
कभी तिनके कभी पत्ते कभी खुंश्बू उडा लाई, हमारे घर तो आंधी भी कभी तनहा नहीं आई
धोखा मिला जब
धोखा मिला जब प्यार में; ज़िंदगी में उदासी छा गयी; सोचा था छोड़ दें इस राह को; कम्बख़त मोहल्ले में दूसरी आ गयी!
हर गुनाह कबूल है
हर गुनाह कबूल है हमें, बस सजा देने वाला बेवफा न हो
यूँही भुला देते
यूँही भुला देते हो हद करते हो, इंसान हु तुम्हारी किताबों का सबक़ तो नहीं..
मत पूछो कि मै अल्फाज
मत पूछो कि मै अल्फाज कहाँ से लाता हूँ
ये उसकी यादो का खजाना है बस लुटाऐ जा रहा हूँ..
चाहत में बहुत फ़र्क है
जरूरत और चाहत में बहुत फ़र्क है… कमबख्त़ इसमे तालमेल बिठाते बिठाते ज़िन्दगी गुज़र जाती है
मेरा दुख बाँटने
कुछ लोग आए थे मेरा दुख बाँटने, मैं जब खुश हुआ तो खफा होकर चल दिये…
ज़रूरी नहीं कि
ज़रूरी नहीं कि हर समय लबों पर खुदा का नाम आये;
वो लम्हा भी इबादत का होता है जब इंसान किसी के काम आये।
हमेशा नहीं रहते
हमेशा नहीं रहते
सभी चेहरे नकाबो में ….!!!
हर एक किरदार खुलता है कहानी ख़तम होने पर….!!