यादें भी क्या क्या करा देती हैं…..
कोई शायर हो गया……, कोई
खामोश !!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
यादें भी क्या क्या करा देती हैं…..
कोई शायर हो गया……, कोई
खामोश !!!
ना जाने
कितनी ही अनकही बातें साथ ले गया..!
लोग झूठ कहते रहे कि…
खाली हाथ गया है।।
शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे न दो
मैं
कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे न दो
जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने
मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो
ऐसा कहीं न हो
के पलटकर न आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदायें मुझे न दो
कब मुझ
को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत न था
कब मैं ने ये कहा था सज़ायें
मुझे न दो
हम उन्हे रूलाते हैं, जो
हमारी परवाह करते हैं…(माता पिता)
हम उनके लिए रोते हैं, जो
हमारी परवाह नहीं करते…(औलाद )
और, हम उनकी परवाह करते
हैं, जो हमारे लिए कभी नहीं रोयेगें !…(समाज)
मुझे पढने वाला पढ़े भी क्या मुझे लिखने वाला लिखे भी
क्या
जहाँ नाम मेरा लिखा गया वहां रोशनाई उलट गई
पत्थर
तो बहुत मारे थे लोगों ने मुझे …!
लेकिन जो दिल पर आ के लगा वो
किसी अपने ने मारा था..!!
हकीक़त कहो तो उनको ख्वाब
लगता है ..
शिकायत करो तो उनको मजाक लगता है…
कितने सिद्दत से उन्हें
याद करते है हम
………….
और एक वो है ….जिन्हें ये सब
इत्तेफाक
लगता है………………
जी भर गया है तो बता दो क्योंकी
हमें इनकार पसंद है इंतजार नही…॥
पांव सूखे हुए पत्तों पे
अदब से रखना
धूप में मांगी थी तुमने
पनाह इनसे कभी
नीलाम
कुछ इस कदर हुए,
बाज़ार-ए-वफ़ा में हम आज..
बोली लगाने वाले
भी वो ही थे,
जो कभी झोली फैला कर माँगा करते थे..