सलीका तुमने परदे का बड़ा अनमोल रख्खा है..
यही निगाहें कातिल हैं इन्ही को खोल रख्खा है..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
सलीका तुमने परदे का बड़ा अनमोल रख्खा है..
यही निगाहें कातिल हैं इन्ही को खोल रख्खा है..
मैं तुम्हारे हिस्से की बेवफाई करूँगा…
तुम मेरे हिस्से की शायरी करना…।।
कच्ची मिट्टी का बना होता है उम्मीदों का घर..!! ढह जाता है हकीकत की बारिश
में अक्सर..!
जब दोबारा शुरु होगा तो मोहरे
हम वही से उठाएगें जहॉ इस वकत थरे है!
यूँ तेरा नाम दुनिया पूछती रहती है मुझ से पर ….
लबों पर आज भी तेरे लबों का हुक्म बैठा है…!
फ़क़त बातें अंधेरों की , महज़ किस्से उजालों के..
चिराग़-ए-आरज़ू ले कर , ना तुम निकले ना हम निकले..
बडी कश्मकश है मौला थोडी रहमत कर दे..
या तो ख्वाब न दिखा, या उसे मुकम्मल कर दे|
एक ख्वाब ही था जिसने साथ ना छोड़ा …
हकीकत तो बदलती रही हालात के साथ…..
बलखाने दे अपनी जुल्फों को हवाओं में
जूड़े बांधकर तू मौसम को परेशां न कर !!!
तकिये के नीचे दबा के रखे है तुम्हारे ख़याल,
एक तस्वीर, बेपनाह इश्क और बहुत सारे साल.!