दुख फ़साना नहीं

दुख फ़साना नहीं के तुझसे कहें
दिल भी माना नहीं के तुझसे कहें
आज तक अपनी बेकली का सबब
ख़ुद भी जाना नहीं के तुझसे कहें|

नर्म लफ़्ज़ों से

नर्म लफ़्ज़ों से भी लग जाती है चोटें अक्सर,
रिश्ते निभाना बड़ा नाज़ुक सा हुनर होता है
मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी मे लोग जीने नहीं देते।

हकीकत जान लो

हकीकत जान लो जुदा होने से पहले,
मेरी सुन लो अपनी सुनाने से पहले,
ये सोच लेना भूलने से पहले,
बहुत रोई हैं ये आँखें मुस्कुराने से पहले|

वो कुछ चुप सा

वो कुछ चुप सा रहता है ..

थोड़ा मशरुफ सा रहता है..

पुरानी फितरत है  वो

अब भी थोड़ा दुर सा रहता है..।