इस क़दर आँखो से

इस क़दर आँखो से दरिया की रवानी हो गई
दर्द के बादल उठे धरती भी पानी हो गई
हाथ पीले कर नहीं सकती ग़रीबी
क्या करे बाप बूढ़ा और बेटी सयानी हो गई|

हर कोई भूल जाता है

हर कोई भूल जाता है अपने शहर को,
उतरता है जब भी खाबों की डगर को।

पा गये हो दोस्त तुम कुछ चार दिन के
भूल गये दोस्त, नाता पुराना साथ जिनके।