हम पर भरी बहार का होता नहीं असर
उनसे बिछड़ गए है तो जज़्बात मर गए
उनसे किसी तरह की भी उल्फत न हो सकी
जो लोग एक बार नज़र से उतर गए
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हम पर भरी बहार का होता नहीं असर
उनसे बिछड़ गए है तो जज़्बात मर गए
उनसे किसी तरह की भी उल्फत न हो सकी
जो लोग एक बार नज़र से उतर गए
बेगुनाह होकर भी गुनाह कबूल कर लेता हूँ…
इल्जाम उन्होने लगाया है गलत कैसे कहूँ…!!
सिमटते जा रहे हैं दिल और ज़ज्बातों के रिश्ते ।
सौदा करने में जो माहिर है बस वही कामयाब है।
चंद खाली बोतलें चंद हसीनो के खतूत
बाद मरने के, मेरे घर से ये सामां निकला।
साज़िशें लाखों बनती हैं, मेरी हस्ती मिटाने की! बस दुआएँ मेरी माँ की, उन्हें मुकम्मल होने नहीं देतीं।
वो चूड़ी वाले को अपनी पूरी कलाई थमा देते है
जिनकी हम आज तक उंगलिया छूने को तरसते हैं|
अंजाम की ख़बर तो साहब . . कर्ण को भी थी. . .पर बात दोस्ती निभाने की थी..
तुझसे मोहब्बत के लिए तेरी मौजूदगी की जरूरत नही,.
ज़र्रे-ज़र्रे में तेरी रूह का अहसास होता है|
इस तरह अंदाज़ा लगा …. उसकी कड़वाहटों का,
आख़री ख़त तेरा दीमक से भी खाया न गया…!!!
रात थी और स्वप्न था तुम्हारा अभिसार था !
कंपकपाते अधरद्व्य पर कामना का ज्वार था !
स्पन्दित सीने ने पाया चिरयौवन उपहार था ,
कसमसाते बाजुओं में आलिंगन शतबार था !!
आखेटक था कौन और किसे लक्ष्य संधान था !
अश्व दौड़ता रात्रि का इन सबसे अनजान था !
झील में तैरती दो कश्तियों से हम मिले ,
केलिनिश का काल प्रिये मायावी संसार था !!
चंचल चूड़ी निर्लज्जा कौतक सब गाती रही !
सहमी हुई श्वास भी सरगम सुनाती रही !
मलयगिरी से आरोहित राहों के अवसान थे ,
प्रणय सिंधु की भाँवर में छाया हाहाकार था !!
नेह की अभिलाष भरी लालसा फिर तुम बनी !
मद भरा दो चक्षुओं में मदालसा फिर तुम बनी !
वेणी खुलकर यूँ बिखरी और रात गमक उठी ,
शशि धवल मुख देख खुद चाँद शर्मसार था !!