ख़ुदा जाने किस
‘दर’ का चिराग़ हूँ मैं..
जिसका दिल चाहे ‘ज़ला’ के छोड़ देता है.
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ख़ुदा जाने किस
‘दर’ का चिराग़ हूँ मैं..
जिसका दिल चाहे ‘ज़ला’ के छोड़ देता है.
मूर्ति बेचने वाले गरीब
कलाकार के लिए,
किसी ने क्या खूब लिखा है….
गरीबो के बच्चे भी
खाना खा सके त्योहारों में,
इसिलिये भगवान खुद बिक जाते है बाजारों
में……
तुम ही
आख़िर थाम लो न मुझे,
सबने छोड़ दिया है मुझे तेरा समझकर…॥
बीती बातें
याद आती है जब अकेला होता हूँ मैं,
बोलती है खामोशियाँ सबसे छुप
के रोता हूँ मैं…॥
ग़ालिब, मीर, फ़राज़ जो कह गए कभी उन हर्फों से तराशी हुई, तुम ग़ज़ल हो ।।
तुम आओ न दुल्हन बन कर
मुँह दिखायी में जान दे दूंगा
सुना है काफी पढ़
लिख गए हो तुम,
कभी वो बी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते !!
सामान बाँध लिया है मैंने
अब बता ओ गालिब…
कहाँ रहते हैं वो लोग
जो कहीं के नहीं रहते…
यादें भी क्या क्या करा देती हैं…..
कोई शायर हो गया……, कोई
खामोश !!!
ना जाने
कितनी ही अनकही बातें साथ ले गया..!
लोग झूठ कहते रहे कि…
खाली हाथ गया है।।