कसा हुआ हैं तीर हुस्न का ज़रा संभलके रहियेगा,
नज़र नज़र को मारेगी तो क़ातिल हमें ना कहियेगा…….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कसा हुआ हैं तीर हुस्न का ज़रा संभलके रहियेगा,
नज़र नज़र को मारेगी तो क़ातिल हमें ना कहियेगा…….
किसी के पास कुल्हाड़ी है क्या ?
दिन काटना है ….
इस बार की सर्दियों में ऐसा न होने
पाए …
चढ़ती रहें चादरें मज़ार पर
और
बाहर बैठा फ़क़ीर ठंड से मर जाए …!!
जिंदगी के रूप में दो घूंट मिले,
इक तेरे इश्क का पी चुके हैं..दुसरा तेरी जुदाई का पी रहे हैं !!!!
वो पतथर भी मारे तो उठा के झोलियाँ भर लूँ
कभी मोहब्बत के तोहफ़ो को लौटाया नही करते ।
कहानियाँ लिखने लगा हूँ मैँ अब.!!
शायरियोँ मेँ अब तुम समाती नहीँ.!!
जिस समय हम किसी का
‘अपमान ‘ कर रहे होते हैं,
दरअसल,
उस समय हम अपना
‘सम्मान’ खो रहे होते है…
अपनी खुशियों की चाबी
किसी को न देना…
लोग अक्सर
दूसरों का सामान खो देते हैं…
मैं खुद भी अपने लिए
अजनबी हूं …
मुझे गैर कहने वाले
तेरी बात मे दम है…
झूठ बोलते है वो…
जो कहते हैं,
हम सब मिट्टी से बने हैं
मैं कईं अपनों से वाक़िफ़ हूँ जो पत्थर के बने हैं