ऐसा नहीं कि कहने को कुछ नहीं बाकी,
मैं बस देख रहा हूँ क्या ख़ामोशी भी समझते हैं सुनने वाले…!
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मुद्दतों बाद ये
मुद्दतों बाद ये दस्तक कैसी,,
ज़रूर कोई मतलबी होगा!!
बातों को स्वीकार
हे भगवान,
मुझे उन बातों को स्वीकार करने का धैर्य प्रदान करो जिन्हें मैं बदल नहीं सकता हूं;
जिन चीजों को मैं बदल सकता हूं उनको बदलने का साहस दो
तथा इन दोनों में अंतर करने के लिए बुद्धि प्रदान करो।
बरसों से खामोश हूं.
लोग कहते हैं कि समझो तो..खामोशियां भी बोलती हैं..!
मै बरसों से खामोश हूं..और वो बरसों से बेखबर है..!!
सब सो गये
सब सो गये अपने हाले दिल बयां करके
अफसोस की मेरा कोई नहीं जो
मुझसे कहे तुम क्यों जाग रहे हो..
इंसान बनाया जाए
अब तो मजहब कोई ऐसा चलाया जाए,
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए..
हम तो लिख देते
हम तो लिख देते हैं जो भी ज़हन में आता है,
दिल को छू जाए तो इत्तफाक ही समझिए……!!
एहसास होता हैं
चलती रेल में खिड़की के पास बैठकर एहसास होता हैं,
मानों जो जितना करीब हैं,
वो तेज़ी से दूर जा रहे है..!!!
याद आते हो
मोहब्बत में हिसाब ओ किताब कौन करे,
..
तुम याद आते हो और बेहिसाब आते हो ।
सर्दियों में अक्सर
सर्दियों में अक्सर…
चोटें ज्यादा असर करतीं हैं…..!!