ये जो खामोश से अल्फ़ाज़ लिखे है ना,
पढ़ना कभी ध्यान से, चीखते कमाल के है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ये जो खामोश से अल्फ़ाज़ लिखे है ना,
पढ़ना कभी ध्यान से, चीखते कमाल के है…
काश की कहीं इश्क़ के भी पकोड़े होते
हम भी शिद्दत की चटनी के चटोरे होते|
एक रस्म मोहब्बत में बनानी होगी,
छोड़ के जाए कोई भी शौक से,
मगर वज़ह एक दूसरे को बतानी होगी !
आँखें थक गई है शायद
आसमान को तकते तकते…,
वो तारा नहीं टुटता..
जिसे देखकर मैं तुम्हें माँग लूँ ….
इधर आओ जी भर के हुनर आज़माएँ,
तुम तीर आज़माओ, हम ज़िग़र आज़माएँ..
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है
इन्सान मार दिया जाता है तो कोई कुछ नहीं बोलता
जानवर काट दिया तो दंगे भड़का देते है |
ज़ायके सैंकड़ों मौजूद थे लेकिन हम ने !!
हिज्र का रोज़ा तेरी याद से इफ़्तार किया !!
उसने अपने दिल के अंदर जब से नफरत पाली है।
ऊपर ऊपर रौब झलकता अंदर खाली खाली है।।
दर्द की भी अपनी ही एक अदा है…वो भी सिर्फ सहने वालों पर ही फिदा है..