शायरी ख़ुदकशी का धंधा है..,
लाश अपनी है अपना ही कंधा है..
आईना बेचता फिरता है शायर..,उस शहर में जो शहर अंधा है….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
शायरी ख़ुदकशी का धंधा है..,
लाश अपनी है अपना ही कंधा है..
आईना बेचता फिरता है शायर..,उस शहर में जो शहर अंधा है….
रात बाक़ी थी जब वो बिछड़े थे
कट गई उम्र रात बाक़ी है|
वो मेरी हर दुआ में शामिल था..
जो किसी और को बिन मांगे मिल गया|
सारी दुनिया का हुस्न देख लिया
तुम आज भी लाजवाब लगती हो..!
उसे छुना जुर्म है,,
तो मेरी फाँसी का इन्तेजाम करो..
मै आ रहा हु उसे सीने से लगा कर…
जाने क्या था जाने क्या है जो मुझसे छूट रहा है….
यादें कंकर फेंक रही है दिल अंदर से टूट रहा है…..
अगर लोग यूँ ही कमिया निकालते रहे तो,…
एक दिन सिर्फ खुबिया ही रह जायेगी मुझमे …
तुम मुझे हंसी हंसी में खो तो दोगे,
पर याद रखना… आंसुओं में ढ़ूंढ़ोगे…
इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले,
और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले|
रुख़सत हुआ तो आँख मिलाकर नहीं गया,
वो क्यूँ गया है ये भी बताकर नहीं गया।
यूँ लग रहा है जैसे अभी लौट आएगा,
जाते हुए चिराग़ बुझाकर नहीं गया।
बस, इक लकीर खेंच गया दरमियान में,
दीवार रास्ते में बनाकर नहीं गया।
शायद वो मिल ही जाए मगर जुस्तजू है शर्त,
वो अपने नक़्श-ए-पा तो मिटाकर नहीं गया।
घर में हैं आज तक वही ख़ुशबू बसी हुई,
लगता है यूँ कि जैसे वो आकर नहीं गया।
रहने दिया न उसने किसी काम का मुझे,
और ख़ाक में भी मुझको मिलाकर नहीं गया।