बात ऊँची थी

बात ऊँची थी मगर बात ज़रा कम आँकी
उस ने जज़्बात की औक़ात ज़रा कम आँकी
वो फरिश्ता मुझे कह कर ज़लील करता रहा
मैं हूँ इन्सान, मेरी ज़ात ज़रा कम आँकी

करूँ क्या मै

करूँ क्या मै फरियाद अपनी ज़ुबो से ,
गिरे टूटकर बिजलियो आसमां से ,
मै अश्क़ों मे सारे जहॉ को बहा दूँ ,
मगर मुझको रोने की आदत नही हैं|