ऐ समन्दर मैं

ऐ समन्दर मैं तुझसे वाकिफ हूं मगर इतना बताता हूं…
वो आंखें तुझसे ज्यादा गहरी हैं जिनमें मैं समाता हूं…

सच ये है

सच ये है पहले जैसी वो चाहत नहीं रही…

लहजा बता रहा है मोहब्बत नहीं रही..