एक रस्म मोहब्बत में बनानी होगी,
छोड़ के जाए कोई भी शौक से,
मगर वज़ह एक दूसरे को बतानी होगी !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
एक रस्म मोहब्बत में बनानी होगी,
छोड़ के जाए कोई भी शौक से,
मगर वज़ह एक दूसरे को बतानी होगी !
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है
उसने अपने दिल के अंदर जब से नफरत पाली है।
ऊपर ऊपर रौब झलकता अंदर खाली खाली है।।
बाजार सब को तौलता है अब तराजू में,
फन बेचते अपना यहाँ फनकार भी देखे।
मत किया कर ऐ दिल किसी से मोहब्बत
इतनी..!!जो लोग बात नहीं करते वो प्यार क्या
करेंगे…!!
क्या ऐसा नही हो सकता …..
हम प्यार मांगे, और तुम गले लगा कर कहो….
“और कुछ”
गाँव में जो छोड़ आए हजारों गज की हवेली,
शहर के दो कमरे के घर को तरक्की समझने लगे हैं।
मोहब्बत सिर्फ देखने से नहीं,कभी कभी बातो से भी हो जाती है…
ये ना समझना कि खुशियो के ही तलबगार है हम..
तुम अगर अश्क भी बेचो तो उसके भी खरीदार है हम..
रोज सोचता हूँ तुझे भूल जाऊ, रोज यही बात…. भूल जाता हूँ