खत क्या लिखा…..
मानवता के पते पर
डाकिया ही गुजर गया
पता ढूढते ढूढते…..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
खत क्या लिखा…..
मानवता के पते पर
डाकिया ही गुजर गया
पता ढूढते ढूढते…..
कुछ रिश्तों के खत्म होने की वजह
सिर्फ यह होती है कि..
एक कुछ बोल नहीं पाता
और दुसरा कुछ समझ ही नहीं पाता।
हो जाता है जैसे पत्थर से खुदा
कोई ।
ऐसे वो मेरा खुदा होकर पत्थर
हो गया ।।
सुविचारों का असर इसलिए नहीं होता
क्योंकि लिखने वाले और पढने वाले
दोनों यह समझते है की ये दूसरों के लिए है।
अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा।
जहाँ लोग मिलते कम, झांकते ज़्यादा है।
मुहब्बत की कोई कीमत मुकर्रर हो नही सकती है,
ये जिस कीमत पे मिल जाये उसी कीमत पे सस्ती है
चलने दो जरा आँधियाँ हकीकत की,
न जाने कौन से झोंके मैं अपनो के मुखौटे उड़ जाये।
रोज़ बदलो न इनको यूँ लिबासों की तरह,
ये रिश्तें हैं जनाब बाज़ारों में कहाँ मिलते हैं।
ख्वाहिशों की चादर तो कब की तार तार हो चुकी…
देखते हैं वक़्त की रफूगिरि क्या कमाल करती हैं…
करीब ना होते हुए भी करीब
पाओगे हमें क्योंकि…
एहसास बन के दिल में उतरना
आदत है मेरी….