दो निवालों के खातिर मार दिया जिस परिंदे को..
बहुत अफ़सोस हुआ ये जान कर वो भी दो दिन से भूखा था|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
दो निवालों के खातिर मार दिया जिस परिंदे को..
बहुत अफ़सोस हुआ ये जान कर वो भी दो दिन से भूखा था|
कुछ चीज़े कमज़ोर की हिफाज़त में भी महफूज़ हैं …
जैसे,
मिट्टी की गुल्लक में लोहे के सिक्के ….
हर मर्ज का इलाज मिलता नहीं दवाखाने से,
अधिकतर दर्द चले जाते हैं सिर्फ मुस्कुराने से..
लबों से गाल फिर सफ़र तेरी नज़र तक का ..
तौबा,बहुत कम फ़ाँसलें पर इतने मयख़ाने नहीं होते …
लिखते जा रहे हो साहब
मोहब्बत हो गई..या खो गई है|
आजकल रिश्ते नाते, रोटी से हो गये,
थोड़ी सी आँच बढ़ी, और जल गये
देर तलक सोने की आदत छूट गयी
माँ का आँचल छूटा जन्नत छूट गयी
बाहर जैसा मिलता है खा लेते हैं
घर छूटा खाने की लज़्ज़त छूट गयी
तेरा ख़्याल चीनी का दाना हो जैसे..
मेरी उम्मीदें चीटियों की कतारों जैसी…
एक लाइन में क्या तेरी तारीफ़ लिखूँ………
पानी भी जो देखे तुझे तो प्यासा हो जाये…..
दिल ऐसी शय नही जो काबू में रह सके…समझाऊ किस कदर किसी बेखबर को मैं…!!