बारिश में उछलते भीगते मेरे बचपन को….
अब दफ्तर की खिड़की से निहार लेता हूं….!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बारिश में उछलते भीगते मेरे बचपन को….
अब दफ्तर की खिड़की से निहार लेता हूं….!
बस दिलों को जीतना ही
जिंदगी का मकसद रखना
वरना
दुनिया जीतकर भी
सिकंदर खाली हाथ ही गया…
तुमसे मिलने का हमने निकाल लिया एक रास्ता…..
झांक लेते हैं दिल में …आँखों को बन्द करके…!
सब को आता नहीं,कानून से लड़ने का हुनर
आस मजबूर की इंसाफ पे ठहरी देखी
हमारी उम्र नहीं थी इश्क़ करने की
बस तुम्हे देखा और हम जवां हो गए
कौन कमबख़्त चाहता है सुधर जाना
हमारी ख़्वाहिश तुम्हारी लतों में शुमार हो जाना !
ज़मीं से हमें आसमाँ पर बिठा के गिरा तो न दोगे
अगर हम ये पूछें कि दिल में बसा के भुला तो न दोगे|
ये मशवरा है कि पत्थर बना के रख दिल को
ये आईना ही रहा तो जरूर टूटेगा
हमने आज खुद को आज़माने की कोशिश की,
मोहब्बत से दिल को बचाने की कोशिश की.
दिल दुखाती थी जो पहले अब रास आने लगी है
अब उदासी रफ़्ता-रफ़्ता दिल को भाने लगी है…!!