ऐ मीर ए कारवां मुझे मुड़ कर ना देख तू
मैं आ रहा हूँ पाँव के काँटे निकाल के..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ऐ मीर ए कारवां मुझे मुड़ कर ना देख तू
मैं आ रहा हूँ पाँव के काँटे निकाल के..
मुझे भी कोई कहीं लिख दे …
के सांस मिले, थोड़ी जगह मिले …
पूछा जो उनसे चाँद निकलता है किस तरह,
जुल्फों को रूख पै डालके झटका दिया कि यूँ।
एक लम्हा भी मसर्रत का बहुत होता है,
लोग जीने का सलीका ही कहाँ रखते हैं।
एक बाज़ार है ये दुनिया…
सौदा संभाल के कीजिए…
मतलब के लिफ़ाफ़े में…
बेशुमार दिल मिलते हैं…
आने लगा हयात को अंजाम का खयाल,
जब आरजूएं फैलकर इक दाम बन गईं।
अगर कांटा निकल जायें चमन से,
तो फूलों का निगहबां कौन होगा।
आँखों में छुपाए फिर रहा हूँ,
यादों के बुझे हुए सबेरे।
कैसे चुकाऊं किश्तें ख्वाहिशों की ..
मुझ पर तो ज़रुरतों का भी एहसान चढा हुआ है ..!!
ढूँढ़ा है अगर जख्मे-तमन्ना ने मुदावा,
इक नर्गिसे-बीमार की याद आ ही गई है।