तारीफ़ अपने आप की, करना फ़िज़ूल है…
ख़ुशबू तो ख़ुद बताएगी, कौन सा फ़ूल है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तारीफ़ अपने आप की, करना फ़िज़ूल है…
ख़ुशबू तो ख़ुद बताएगी, कौन सा फ़ूल है…
ना हुस्न ढला है ना इश्क़ बिका है
लोगो का बस थोड़ा जमीर गिरा है|
किसी के होठों पे रूकी हुई
बात बन कर,
रात ठहरी हो जैसे|
थोड़ी सी खुद्दारी भी लाज़मी थी…
उसने हाथ छुड़ाया,मैंने छोड़ दिया…
हाथ बेशक छूट गया,
लेकिन
वजूद उसकी उंगलियो में ही रह गया..
ये शाम कबसे बेकरार है
ढलने को.
तू इक दफे आँचल में अपने
मुझे संभालने की ख्वाहिश तो कर|
मैं वो बात हूँ, जो बनी नहीं..
मैं वो रात हूँ,जो कटी नहीं !!
जीना है सब के साथ कि इंसान मैं भी हूँ,
चेहरे बदल बदल के परेशान मैं भी हूँ !!
ज़िन्दगी के हिसाब किताब भी बड़े अजीब थे
जब तक हम अज़नबी थे, ज्यादा करीब थे….
कैसे लिखोगे मोहब्बत की किताब
तुम तो करने लगे पल पल का हिसाब|