उस दिल कॊ कभी नज़रअंदाज मत करॊ जॊ तुम्हारी परवाह करता है,
क्यॊकीं तुम दुनियाँ के लिए एक हो, और किसी एक के लिए, सारी दुनियाँ…
Category: शर्म शायरी
कुछ लॊग मुझे
कुछ लॊग मुझे अपना कहा करते थे…
सच कहूँ…
तॊ बस कहा करते थे…
दर्द छुपाते-छुपाते…
लॊग कहते है कि तुम मुस्कुराते बहुत हॊ,
और एक हम है जॊ थक गए है दर्द छुपाते-छुपाते…
मैं खुश हूँ कि
मैं खुश हूँ कि उसकी नफ़रत का अकेला वारिस हूँ,,वरना मोहब्बत तो उसे कई लोगो से है।।
बंद करॊ बार-बार
यूँ ताकना बंद करॊ बार-बार इस आइने कॊ,
नजर लगा दॊगी देखना मेरी इकलौती मॊहब्बत कॊ…!
मीठी सी ठंढक है
मीठी सी ठंढक है आज इन हवाओं में,
तेरी याद से भरा दराज शायद खुला रह गया..
दीवाने लोग मेरी
दीवाने लोग मेरी कलम चूम रहे है
तुम मेरी शायरी में वो असर छोड़ गई हो
सपनॊं के बिन
सपनॊं के बिन जैसे आँखॊं की कीमत कॊई ना,
बस ऐसे ही हूँ मै तेरे बिन मेरी चाहत कॊई ना ॥
कितनी है कातिल ज़िंदगी
कितनी है कातिल ज़िंदगी की ये आरज़ू….!!
मर जाते हैं किसी पे लोग, जीने के लिये….!!
वाह रे जमाने
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई, बीवी के
आगे माँ रद्द हो गई !
बड़ी मेहनत से जिसने पाला, आज
वो मोहताज हो गई !
और कल की छोकरी, तेरी सरताज हो गई !
बीवी हमदर्द और माँ सरदर्द हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई.!!
पेट पर सुलाने वाली, पैरों में सो रही !
बीवी के लिए लिम्का,
माँ पानी को रो रही !
सुनता नहीं कोई, वो आवाज देते सो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई.!!
माँ मॉजती बर्तन, वो सजती संवरती है !
अभी निपटी ना बुढ़िया तू , उस पर बरसती है !
अरे दुनिया को आई मौत,
तेरी कहाँ गुम हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई .!!
अरे जिसकी कोख में पला, अब
उसकी छाया बुरी लगती,
बैठ होण्डा पे महबूबा, कन्धे पर हाथ
जो रखती,
वो यादें अतीत की, वो मोहब्बतें माँ की, सब रद्द
हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई .!!
बेबस हुई माँ अब, दिए टुकड़ो पर पलती है,
अतीत को याद कर, तेरा प्यार पाने को मचलती है !
अरे मुसीबत जिसने उठाई, वो खुद मुसीबत
हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई .!!