मैँ कभी बुरा नही

मैँ कभी बुरा नही था……… उसने मुझे बुरा कह दिया फिर मैँ बुरा बन गया ताकी उन्हे कोई झुठा ना कह दे।

इतनी नफरत थी

इतनी नफरत थी उसे मेरी मोहब्बत से ,उसने हाथ जला डाले,मुझे तक़दीर से मिटाने के लिए.

जिसका दिल चाहे

ख़ुदा जाने किस ‘दर’ का चिराग़ हूँ मैं.. जिसका दिल चाहे ‘ज़ला’ के छोड़ देता है.

गरीबो के बच्चे भी

मूर्ति बेचने वाले गरीब कलाकार के लिए, किसी ने क्या खूब लिखा है…. गरीबो के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों में, इसिलिये भगवान खुद बिक जाते है बाजारों में……

आख़िर थाम लो

तुम ही आख़िर थाम लो न मुझे, सबने छोड़ दिया है मुझे तेरा समझकर…॥

याद आती है

बीती बातें याद आती है जब अकेला होता हूँ मैं, बोलती है खामोशियाँ सबसे छुप के रोता हूँ मैं…॥

तुम ग़ज़ल हो

ग़ालिब, मीर, फ़राज़ जो कह गए कभी उन हर्फों से तराशी हुई, तुम ग़ज़ल हो ।।

मुँह दिखायी में

तुम आओ न दुल्हन बन कर मुँह दिखायी में जान दे दूंगा

सुना है काफी

सुना है काफी पढ़ लिख गए हो तुम, कभी वो बी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते !!

सामान बाँध लिया

सामान बाँध लिया है मैंने अब बता ओ गालिब… कहाँ रहते हैं वो लोग जो कहीं के नहीं रहते…

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