खत क्या लिखा…..
मानवता के पते पर
डाकिया ही गुजर गया
पता ढूढते ढूढते…..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
खत क्या लिखा…..
मानवता के पते पर
डाकिया ही गुजर गया
पता ढूढते ढूढते…..
कुछ रिश्तों के खत्म होने की वजह
सिर्फ यह होती है कि..
एक कुछ बोल नहीं पाता
और दुसरा कुछ समझ ही नहीं पाता।
अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा।
जहाँ लोग मिलते कम, झांकते ज़्यादा है।
मुहब्बत की कोई कीमत मुकर्रर हो नही सकती है,
ये जिस कीमत पे मिल जाये उसी कीमत पे सस्ती है…..
चलने दो जरा आँधियाँ हकीकत की,
न जाने कौन से झोंके मैं अपनो के मुखौटे उड़ जाये।
ख्वाहिशों की चादर तो कब की तार तार हो चुकी…!!
देखते हैं वक़्त की रफूगिरि क्या कमाल करती हैं…!!
करीब ना होते हुए भी करीब
पाओगे हमें क्योंकि…
एहसास बन के दिल में उतरना
आदत है मेरी….
बदन के घाव दिखाकर जो अपना पेट भरता है,
सुना है वो भिखारी जख्म भर जाने से डरता है।
ख़त्म हो भी तो कैसे, ये मंजिलो की आरजू,
ये रास्ते है के रुकते नहीं, और इक हम के झुकते नही।
मत पूछो कि मै यह अल्फाज कहाँ से लाता हूँ,
उसकी यादों का खजाना है, लुटाऐ जा रहा हूँ मैं….