इक तेरा हुस्न

इक तेरा हुस्न काफ़िराना था

दूसरी और शराबखाना था,

रास्ता इख़्तियार जो भी करता

आज अपना इमान जाना था…..

मैं पूछता रहा

मैं पूछता रहा

और फ़िर..
इस तरह

मिली वो मुझे सालों के बाद ।
जैसे हक़ीक़त मिली हो ख़यालों के बाद ।।
मैं पूछता रहा उस

से ख़तायें अपनी ।
वो बहुत रोई मेरे सवालों के बाद ।।