Wabasta Ho Gai Thi Kuch Umeedain Aap Say,
Umeedon Ka Chiraagh Bhujaany Ka Shukriyaa….!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
Wabasta Ho Gai Thi Kuch Umeedain Aap Say,
Umeedon Ka Chiraagh Bhujaany Ka Shukriyaa….!
सियासत भी तवायफ़ है मोहब्बत क्यूँ करेगी वो
भला किस वक्त घुंघरू इसके मक्कारी नहीं करते
बीवी, बच्चे, सड़कें, दफ्तर और तनख्वाह के चक्कर में
मैं घर से अपना ही चेहरा पढ़कर जाना भूल गया
कभी तुम जड़ पकड़ते हो कभी शाखों को गिनते हो
हवा से पूछ लो न ये शजर कितना पुराना है
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है
किसी शहर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख़्त जब तक हरा भरा है
इश्क का तू हरफ।।जिसके चारों तरफ।।मेरी बाहों के घेरे का बने हासिया
आस्था को ठेस पहुंची तो लगे तुम चीखने
मंदिरों में धर्म भी है कि नहीं ये तो पढो
ज़हर जो शंकर बनाये आपको तो खाइए
वरना इक इंसान को विषधर न होने दीजिये
तुमको देखा तो फिर उसको ना देखा
हमने….!!
चाँद कहता रहा कई बार कि मैं चाँद हूं, मैं
चाँद हूँ….!!