अजीब मेरा अकेलापन है…
तेरी चाहत
भी नहीं..और
तेरी जरूरत भी है …!!!
Category: व्यंग्य शायरी
जरूरत भर खुदा
जरूरत भर खुदा सबको देता है।
परेशां है लोग इस वास्ते कि, बेपनाह मिले।
दिलनशी दुनिया के
दिलनशी दुनिया के नक्शों को ना होने दीजिए
इस गुलिश्ता से गुजर जाईए, दरिया होकर!!!!
कभी नही बुझते
कभी जलाओ तो सही दुआओं से।
दिये कभी नही बुझते फिर हवाओं से।
अब कहाँ जरुरत है
अब कहाँ जरुरत है हाथों मे पत्थर उठाने की,
तोडने वाले तो जुबान से ही दिल तोड़ देते हैं…..
कितनी ही शिद्दत से
कितनी ही शिद्दत से निभा लो तुम रिश्ता,
बदलने वाले बदल ही जाते हैं…!!!
जरूरत भर खुदा
जरूरत भर खुदा सबको देता है।
परेशां है लोग इस वास्ते कि, बेपनाह मिले।
गुनगुनाता जा रहा था
गुनगुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रहती है न छाया देर तक
तेरी नाराजगी वाजिब
तेरी नाराजगी वाजिब है… दोस्त
मैं भी खुद से खुश नहीं आजकल.
कभी कभी धोखा
इस कदर भूखा हूँ कि .. कभी कभी धोखा भी खा लेता हूँ…!!!!