जब तक सत्य घर से बहार निकलता है ll
तब तक ज़ुठ आधी दुनिया घुम लेता है ll
Category: व्यंग्य शायरी
जज़बात पर काबू
जज़बात पर काबू , और वो भी मोहब्बत में…
तूफान से कहते हो , चुपचाप गुज़र जाये ।
छींटें बिखर जातें हैं ……
छू के उनकी दीवार को , जब निकलती है सबा …..
।
घर से उनकी आवाज़ के , छींटें बिखर जातें हैं ……❗❗
हमसे खेलती रही
हमसे खेलती रही दुनिया ताश के पत्तों की तरह
जो जीता उसने भी फेंका और जो हारा उसने भी फेंका…..
बस एक शख्स
बस एक शख्स ऐसा हो , जो टूट कर वफ़ा करे
उठाए हाथ जब भी वो, मेरे लिए दुआ करे
अकेले बैठी मैं कहीं जो गुम ख्यालों में दिखूँ
तो आँखें मीच कर मेरी, वो पीछे से हँसा करे
मुझे बताए ग़लतियाँ, दिखाए भी वो रास्ता
वो बन के आइना, मुझे हर एक पल दिखा करे
मुझे खफा करे भी वो , मना भी ले दुलार से
जो खिलखिला के हंस पडूँ, तो एकटक तका करे.
मै खड़ा ही रहा..
मै खड़ा ही रहा.., पूछता पूछता…
उसने नज़रें झुकाई,जवाब हो गया ||
फलसफा ही पढ़ा था, सफा दर सफा,
उसने जो लिख दिया ,वो किताब हो गया ||
मैंने उम्र गुज़ारी ,उनके इंतजार में
वो मुस्कुरा जो दिए तो हिसाब हो गया ||
मै तरसता.. रहा… अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||
दिल से मैंने, ये चाहा,भुलाऊँ उसे….
मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया ||
क्या तू मुझको
क्या तू मुझको समझा कह दे,
दरिया कह या सहरा कह दे.
मुझे आईना कहने वाले,
अपना मुझको चेहरा कह दे.
सिर्फ सोचने से क्या होगा,
अच्छा हूँ तो अच्छा कह दे.
साथ में हर पल रहता है तू,
फिर भी चाहे तो तन्हा कह दे.
छिपा रहा है ख़ुद को मुझसे,
क्या है तेरी मंशा कह दे.
इश्क़ में तेरे ही हूँ अब तू,
अँधा,गूंगा बहरा कह दे.
सोच में तेरी बहने लगा हूँ,
अब तो मुझको गंगा कह दे….
वो कभी मिल जाएँ
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
रात दिन सूरत को देखा कीजिए
चाँदनी रातों में इक इक फूल को
बे-ख़ुदी कहती है सजदा कीजिए
जो तमन्ना बर न आए उम्र भर
उम्र भर उस की तमन्ना कीजिए
इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर
चाँदनी रातों में रोया कीजिए
पूछ बैठे हैं हमारा हाल वो
बे-ख़ुदी तू ही बता क्या कीजिए
हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे
क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए
आप ही ने दर्द-ए-दिल बख़्शा हमें
आप ही इस का मुदावा कीजिए
कहते हैं वो सुन कर मेरे शेर
इस तरह हम को न रुसवा कीजिए
मुद्दत उन्हें देख
बाद मुद्दत उन्हें देख कर यूँ लगा
जैसे बेताब दिल को क़रार आ गया
आरज़ू के गुल मुस्कुराने लगे
जैसे गुलशन में बहार आ गया
तिश्न नज़रें मिली शोख नज़रों से जब
मैं बरसने लगी जाम भरने लगे
साक़िया आज तेरी ज़रूरत नहीं
बिन पिये बिन पिलाये खुमार आ गया
रात सोने लगी सुबह होने लगी
शम्म बुझने लगी दिल मचलने लगे
वक़्त की रोश्नी में नहायी हुई
ज़िन्दगी पे अजब स निखार आ गया
नीम के रस में
नीम के रस में मिला जब जहर तो मीठा हो गया
झूठ उसने इस कदर बोला कि सच्चा हो गया
इतना उजला था लिबासे लफ्ज उस तकरीर का
लोग थोडी देर को समझे कि सवेरा हो गया
आ गले लग जा मुबारक हो तुझे मेरे रकीब
कल तलक जो शख्स मेर था वो तेरा हो गया
इक चेहरा, इक बगीचा, इक नजर, इक सर्द आह
उस गली से फिर हमारा पाँव फेरा हो गया…..