हमे क्या मालुम था ईस तरह रास्ते मै छोड के जायेगी पगली,
पता होता तो साथ मे साईकल तो ले आते..
Category: व्यंग्य
मैंने चाहा है
मैंने चाहा है तुझे आम से इंसाँ की तरह
तू मेरा ख़्वाब नहीं है जो बिखर जाएगा|
जमाने में कभी भी
जमाने में कभी भी किस्मतें बदला नही करती!!
उम्मीदों से भरोसों से दिलासों से सहारों से
एक एक पन्ना हर कोई
एक एक पन्ना हर कोई बांट लेते है मतलब की…
सुबह-सुबह मां घर में अखबार जैसे हो जाती है…
सबूतों और गवाहों
सबूतों और गवाहों की साहब… यहाँ सेल नहीं होती,
आपने जुर्म-ए-मोहब्बत किया है, इसमें बेल नहीं होती।
शाख़ें रहीं तो
शाख़ें रहीं तो फूल और पत्ते भी ज़रूर आयेंगे…
ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी ज़रूर आयेंगे…!!!
जरा देखो तो ये दरवाजे
जरा देखो तो ये दरवाजे पर दस्तक किसने दी है, अगर ‘इश्क’ हो तो कहना, अब दिल यहाँ नही रहता..
सूरज रोज़ अब भी
सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है ।
तुम गये जब से उजाला नहीं हुआ….
मुझे लत है!!
मुझे लत है!!
मै खुद को खोद खोद कर..
खुद में पीड़ा खोजता हूँ!!
और फिर उस पीड़ा के नशे में..
मै खुद को दफन कर देता हूँ !!
लदी हुई है
लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार,
पर बाहर एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।