दाग शराफत के कुछ ऐसे लगे थे ,
ज़िन्दगी भी खुल के हम जी न पाये।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
दाग शराफत के कुछ ऐसे लगे थे ,
ज़िन्दगी भी खुल के हम जी न पाये।
कहीं किसी रोज यूँ भी होता, हमारी हालत तुम्हारी होती
जो रात हम ने गुजारी मर के, वो रात तुम ने गुजारी होती…
शायर तो कह रहा था कि हमने कहा है शेर
और शेर कह रहा था चुराए हुए हैं हम….!
कुछ तो सोचा होगा कायनात ने
तेरे-मेरे रिश्ते पर…
वरना इतनी बड़ी दुनिया में
तुझसे ही बात क्यों होती….
तेरे गुरूर को देखकर तेरी तमन्ना ही छोड़ दी हमने,
जरा हम भी तो देखे कौन चाहता है तुम्हे हमारी तरह…!!
हम रोने पे आ जाएँ तो दरिया ही बहा दें,
शबनम की तरह से हमें रोना नहीं आता…
मुक्कम्मल ज़िन्दगी तो है,
मगर पूरी से कुछ कम है।
अख़बार का भी अजीब खेल है,
सुबह अमीरों की चाय का मजा बढाती है,
रात में गरीबों के खाने की थाली बन जाती है।
ज़िन्दगी को समझने में वक़्त न गुज़ार,
थोड़ी जी ले पूरी समझ में आ जायेगी।
गर आदमी की नियत बुरी है समझो ,
जमाने में हैसियत उसकी बहुत बड़ी है