आ थक के कभी

आ थक के कभी और, पास मेरे बैठ तू हमदम
. . . तू खुद को मुसाफ़िर, मुझे दीवार समझ ले ।

कीसीने युं ही

कीसीने युंही पुछ लिया की दर्दकी किमत क्या है?
हमने हंसते हुए कहा, पता कुछ अपने मुफ्त में दे जाते है।

एक ही चौखट पे

एक ही चौखट पे सर झुके तो सुकून मिलता है
भटक जाते है वो लोग जिनके हजारों खुदा होते है।