बीती जो खुद पर तो कुछ न आया समझ
मशवरे यूं तो औरों को दिया करते थे..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बीती जो खुद पर तो कुछ न आया समझ
मशवरे यूं तो औरों को दिया करते थे..
हवा चुरा ले गयी थी
मेरी ग़ज़लों की किताब..
देखो, आसमां पढ़ के रो रहा है
और नासमझ ज़माना खुश है कि बारिश हो रही है..!
मंजिल मिल ही जायेगी, भटकते हुए ही सही..
गुमराह तो वो हैं, जो घर से निकले ही नहीं।
सूखे पत्ते भीगने लगे हैं अरमानों की तरह
मौसम फिर बदल गया , इंसानों की तरह.!!
साथ थे तो शहर छोटा था..
बिछडे तो गलिया भी लम्बी लगने लगी….
तुमसे मिलने का हमने निकाल लिया एक रास्ता…..
झांक लेते हैं दिल में …आँखों को बन्द करके…!
कौन कमबख़्त चाहता है सुधर जाना
हमारी ख़्वाहिश तुम्हारी लतों में शुमार हो जाना !
तुम सावन का महीना हो
मै तुझपे छाया हूँ झूले की तरह|
हमें मालूम है हम से सुनो महशर में क्या होगासब उस को देखते होंगे वो हम को देखता होगा।।
सबकी अपनी अपनी परेशानियाँ है जनाब,
वरना,मेरी तरह शायरियों में कौन अपना वक़्त बर्बाद करता है..!!