लोग कहते हैं कि समझो तो खामोशियां भी बोलती हैं,
मैं अरसे से खामोश हूं और वो बरसों से बेखबर है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
लोग कहते हैं कि समझो तो खामोशियां भी बोलती हैं,
मैं अरसे से खामोश हूं और वो बरसों से बेखबर है…
सिखा दिया ‘तुने’ मुझे… अपनों पर भी ‘शक’ करना..
मेरी ‘फितरत’ में तो था… गैरों पर भी ‘भरोसा’ करना!!
तेरे संग रातों मैं चाँद को
ताकते रहना
बिखर कर अब तो तारे हो गई वो यादे…।
भूल सकते हो तो भूल जाओ इजाज़त है तुम्हे,
ना भूल पाओ तो लौट आना,
एक और भूल की इजाज़त है तुम्हे…!
जो दिल को अच्छा लगता है उसी को दोस्त कहता हूँ ,
मुनाफ़ा देखकर रिश्तों की सियासत मै नही करता
अखबार तो रोज़ आता है घर में,
बस अपनों की ख़बर नहीं आती…..
कोई तबीर (लंबी) उम्र भी यूँ ही जीया,
कोई जरा सी उम्र में इतिहास रच गया..
घोंसला बनाने में… यूँ मशग़ूल हो गए..
उड़ने को पंख हैं… हम ये भी भूल गए…
मुझसे मत पूछा कर ठिकाना मेरा,
तुझ में ही लापता हूँ कहीं….
अब भी चले आते हैं ख्यालों में वो,
रोज लगती है हाजरी उस गैर हाजिर की….
भूले हैं रफ्ता रफ्ता उन्हें मुद्दतों में हम
किश्तों में खुदकुशी का मजा़ हमसे पुछिए !!!!!