वो शायद किसी महंगे खिलौने सी थी…
मैं बेबस बच्चे सा उसे देखता ही रह गया…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वो शायद किसी महंगे खिलौने सी थी…
मैं बेबस बच्चे सा उसे देखता ही रह गया…
मौसम का इशारा है खुश रहने दो बच्चों को
मासूम मोहब्बत है फूलों कि खताओं में…
प्यार आज भी तुझसे उतना ही है..
बस तुझे “एहसास” नही और हमने भी जताना छोड दिया…
कल बहस छिड़ी थी मयखाने में जाम कौन सा बेहतरीन है,
हमने तेरे होंठों का ज़िक्र किया और बहस ख़त्म हो गयी…
बराबर उसके कद के यों मेरा कद हो नहीं सकता
वो तुलसी हो नहीं सकता मैं बरगद हो नहीं सकता
मोहब्बत करने वालों को वक़्त कहाँ जो गम लिखेंगे,
ए दोस्तों
कलम इधर लाओ इन बेवफ़ाओं के बारे में हम लिखेंगे…..
कौन कहता है दुआओ के लिए हाथो की जरुरत होती है कभी अपनी माँ की आँखों में झांक करके देखिये हुज़ूर
वो अनजान चला है, जन्नत को पाऩे के खातिर,
बेखबर को इत्तला कर दो कि माँ-बाप घर पर ही है..
देख कर उसको तेरा यूँ पलट जाना,…..
नफरत बता रही है
तूने मोहब्बत गज़ब की थी.
सूखे पत्तो की तरह बिखरा हुआ था मै,,
किसी ने बड़े प्यार से समेटा, और फिर आग लगा दी..!