मंज़ूर नहीं किसी को ख़ाक में मिलना,
आंसू भी लरज़ता हुआ आँख से गिरता है…..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मंज़ूर नहीं किसी को ख़ाक में मिलना,
आंसू भी लरज़ता हुआ आँख से गिरता है…..
दर्द लिखते रहे….आह भरते रहे
लोग पढ़ते रहे….वाह करते रहे।
ये चांद की आवारगी भी यूंही नहीं है,
कोई है जो इसे दिनभर जला कर गया है..
मेरी उम्र तेरे ख्याल में गुज़र जाए.. चाहे मेरा ख्याल तुझे उम्रभर ना आए|
रिश्ते बनावट के पसंद नहीं मुझे..
दोस्त हों या दुश्मन सब…. असली हैं मेरे..
मुल्क़ ने माँगी थी
उजाले की एक किरन..
निज़ाम ने हुक़्म दिया
चलो आग लगा दी जाय..!!
उनको मेरी आँखें पसंद है,
और मुझे खुद कि आँखों में वो|
खामोश रहने दो लफ़्ज़ों को, आँखों को बयाँ करने दो हकीकत,
अश्क जब निकलेंगे झील के, मुक़द्दर से जल जायेंगे अफसाने..
परिन्दों की फिदरत से आये थे वो मेरे दिल में ,
जरा पंख निकल आये तो आशियाना छोड़ दिया ..
सज़दा कीजिये या मांगिये दुआये..
जो आपका है ही नही वो आपको मिलेगा भी नही..