बिन धागे की सुई सी बन गई है ये ज़िंदगी ,
सिलती कुछ नहीं… बस चुभती चली जा रही है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बिन धागे की सुई सी बन गई है ये ज़िंदगी ,
सिलती कुछ नहीं… बस चुभती चली जा रही है…
मुद्दत हो गयी, कोइ शख्स तो अब ऐसा मिले…!!!
बाहर से जो दिखता हो, अन्दर भी वैसा ही मिले..
आशिक था एक मेरे अंदर, कुछ साल पहले गुज़र गया..!!
अब कोई शायर सा है, अजीब अजीब सी बातें करता है…
रिश्ते टूट न जायें इस डर से बदल लिया है खुद को,
अपनी ज़िद से ज्यादा रिश्तों को अहमियत दी है मैंने !!
सबके कर्ज़े चुका दूँ मरने से पहले, ऐसी मेरी नीयत है;
मौत से पहले तू भी बता दे ज़िंदगी, तेरी क्या कीमत है।
बेताब हम भी है.. दर्द -ए -जुदाई की कसम,
रोती वो भी होगी.. नज़रें चुरा चुरा के !
गम ऐ बेगुनाही के मारे है,, हमे ना छेडो..
ज़बान खुलेगी तो,,
लफ़्ज़ों से लहू टपकेगा.
तुझे रात भर ऐसे याद किया मैंने…
जैसे सुबह इम्तेहान हो मेरा ।
ये जरूरी तो नहीं कि उम्र भर प्यार के मेले हों
हो सकता है कभी हम तुम अकेले हों.
यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में
लो आप अपने दम में सय्याद आ गया..