तुम ने पढ़ा होगा गालिब,
फ़राज़ और मीर को..
हमने तो साहब जिंदगी को पढ़ा है..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तुम ने पढ़ा होगा गालिब,
फ़राज़ और मीर को..
हमने तो साहब जिंदगी को पढ़ा है..
जख़्म खुद ही बता देंगे तीर
किसने मारा है ……
ये हमने कब कहा कि ये काम
तुम्हारा है |
इतना भी दर्द ना दे ऐ ज़िन्दगी
भरोसा ही किया था..कोई कत्ल तो नही ..
बात-बात पे यूँ रुलाया न कर
ऐ-ज़िन्दगी..
जरुरी नहीं सबकी ज़िन्दगी में कोई
चुप कराने वाला हो..
झ़ुठा अपनापन तो हर कोई जताता है…
वो अपना ही क्या जो हरपल सताता है…
यकीन न करना हर किसी पे..
क्यों की करीब है कितना कोई ये तो वक़्त ही बताता है…
अब ना करूँगा अपने दर्द को बया किसी के सामने,
.
दर्द जब मुझको ही सहना है तो तमाशा क्यू करना…
ज़रा मुस्कुराना भी सिखा दे ऐ ज़िंदगी,
रोना तो पैदा होते ही सीख लिया था!
अब ना मैं वो हूँ, न बाकी हैं जमाने मेरे….
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फसाने मेरे…
बहुत याद आते है
वो पल …….
जिसमे आप हमारे और हम तुम्हारे थे……..
ये ज़िन्दगी हमारी,कब हमारी रही,
कुछ रिश्तो में बटी ,कुछ किस्तों में|