बात हुई थी समंदर के किनारे किनारे चलने की..
बातों बातों में निगाहों के समंदर में डूब गए..
Category: याद शायरी
अब कहां दुआओं में
अब कहां दुआओं में वो बरकतें,…वो नसीहतें …वो हिदायतें,
अब
तो बस जरूरतों का जुलुस हैं …मतलबों के सलाम हैं
गुस्ताख निगाहों का गिला
फिर न कीजे मेरी गुस्ताख निगाहों का गिला,
देखिये अपने फिर प्यार से देखा मुझको।
नसीबो में नहीं
नसीबो में नहीं जिनके कमाने और खाने
मुझे उनके गुजारे अजीब लगे|
अजब दुनिया है
अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं
जो शायर हैं वो महफ़िल में दरी- चादर उठाते हैं
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब काँधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं
इन्हें फ़िरक़ापरस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे
ज़मीं से चूमकर तितली के टूटे पर उठाते हैं
समुन्दर के सफ़र से वापसी का क्या भरोसा है
तो ऐ साहिल, ख़ुदा हाफ़िज़ कि हम लंगर उठाते हैं
ग़ज़ल हम तेरे आशिक़ हैं मगर इस पेट की ख़ातिर
क़लम किस पर उठाना था क़लम किसपर उठाते हैं
बुरे चेहरों की जानिब देखने की हद भी होती है
सँभलना आईनाख़ानो, कि हम पत्थर उठाते हैं
जमीन जल चुकी है
जमीन जल चुकी है आसमान बाकी है,
दरख्तों तुम्हारा इम्तहान बाकी है…!
वो जो खेतों की मेढ़ों पर उदास बैठे हैं,
उन्हीं की आँखों में अब तक ईमान बाकी है..!!
बादलों अब तो बरस जाओ सूखी जमीनों पर,
किसी का मकान गिरवी है और किसी का लगान बाकी है…!!!
सीख लिया है
हमने भी कलम रखना सीख लिया है,
यारों! जिस दिन वो कहेगी,
‘मुझे तुमसे मोहब्बत है’,
दस्तख़त करवा लूँगा.!!
कई रिश्तों को
कई रिश्तों को परखा तो नतीजा एक ही
निकला,
जरूरत ही सब कुछ है, महोब्बत कुछ नहीं..
निकाह-ऐ-इश्क
लो आज हम तुमसे निकाह-ऐ-इश्क करते हैं……..
हमें तुमसे मुहब्बत है, मुहब्बत है, मुहब्बत है.
ज़माना बहुत तेज़ चलता है
ज़माना बहुत तेज़ चलता है
साहेब…
मैं एक दिन कुछ ना लिखूँ…लोग मुझे भूलने लगते हैं