मैं अपने शहर के लोगों से ख़ूब वाकिफ़ हूँ
हरेक हाथ का पत्थर मेरी निगाह में है|
Category: मौसम शायरी
ग़ज़ल भी मेरी है
ग़ज़ल भी मेरी है पेशकश भी मेरी है
मगर लफ्ज़ो में छुप के जो बैठी है वो बात तेरी है…
मुस्कुरा जाता हूँ
मुस्कुरा जाता हूँ अक्सर गुस्से में भी तेरा नाम सुनकर,
तेरे नाम से इतनी मोहब्बत है.तो सोच तुझसे कितनी होगी….
बस आखरी बार
बस आखरी बार इस तरह मिल जाना,
मुझ को रख लेना या मुझ में रह जाना !!
जिम्मेदारिया जब कंधो पर
जिम्मेदारिया जब कंधो पर पडती है,
तो अक्सर बचपन याद आता है..
ये खामोश मिजाजी
ये खामोश मिजाजी तुम्हे जीने नहीं देगी, इस दौर में जीना है तो कोहराम मचा दो।
आंखें भीग सी गई
आंखें भीग सी गई है
लगता है आज फिर तू सोने नहीं देगी..
हम मोहब्बत में
हम मोहब्बत में दरख्तों की तरह हैं…
जहाँ लग जायें वहीं मुद्दतों खड़े रहते हैं…!!
स्कूल खत्म हुए तो
स्कूल खत्म हुए तो रस्ते अलग हुए
फिर उसके बाद कभी हम मिले नहीं..!
एक एक कतरे से
एक एक कतरे से आग सी निकलती है
हुस्न जब नहाता है भीगते महीनों में !!
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नर्म नर्म कलियों का रस निचोड़ लेती हैं
पत्थरों के दिल होंगे इन तितलियों के सीनों में।